Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 23

भाग 23
रिपोर्ट में क्या है मैडम, म़ुझे भी तो बताओ माँ कुछ परेशान सी हो गई थी।

माँ जी आपकी बहू के दो टेस्ट किये हैं।एक तो ये उम्मीद. से हैं,और दूसरा इन का खून बहुत कम है जो कि इस अवस्था में चिंता कि विषय है।

तो मैडम जी आप दवाई बताओ, मैं अभी लाकर देती हूँ।

खून कम हे तो इसका इलाज भी बताओ जी।

डाक्टर ने दो तरह की दवाई लिख दी थीऔर रोज अनार का जूस लाजि़मी पीना  बताया था।

माँ तो इस तरह भाग भाग कर काम कर रही थी जैसे वो बीमार ही नहीं है। उन्होंने नर्सिंग होम से निकलते ही एक जूस की दुकान से मिन्नी को जूस के साथ जबरन दवा खिलाई थी।डाक्टर ने पाँच दिन बाद बुलाया था। डाक्टर की बताई सारी सब्जियाँ व फल भी उन्होंने खरीद लिए थे। मिन्नी बस खामोशी से उन्हें देख रही थी।

घर पहुंच ते ही वो रसोई की तरफ जानेलगी थी,

माँ क्या चा हिए था मैं ला देती हूँ।

ना बेटी तूं अब सिर्फ़ आराम करेगी सुना नहीं डॉक्टर ने क्या कहा है।

अरे मां ये लोग तो  बस ऐसे ही कहते हैं, आप प्लीज आराम करें। औऱ कुछ काम भी नहीं बचा है,बस फुलके बनाने है वो में आप के लिए बना दूँगी।
उन को खाना खिला कर मिंन्नी ने उन को दवा .खिलाई थी।वो दवा खाकर सो गई थी। मिन्नी रीति को लेकर उहापोह में थी। उसनें कृष्णा आन्टी को फोन करके बता दिया था की माँ अभी घर पर ही है,इसलिए  मैं अभी नहीं आ सकती।
मिन्नी बेटा भगवान ने तुझे कुछ दिया  है या नहीं, पर तुझे उसनें बेटी बहुत प्यारी और समझदार दी है।अपने  सब काम समय पर खुद करती है,बिना कहे अपने होम वर्क  भी खुद कर लेती है।मैंने इतने बच्चों को पाला है पर ऐसा ज़हीन बच्चा ,आज तक नहीं देखा।तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो।

ठीक है  आन्टी जैसे ही इधर से फारिग होती हूँ तुरन्त पहुंचती हूँ।
मुझे अपनी बेटी की जहनियत पर कोई शुबहा नहीं हैं आन्टी मुझे तो उसके भाग्य से शिकवा है कि माँ बाप दोनों जिन्दा है पर दोनों ही करीब नहीं है।वो खुद से ही बातें कर रही थी।
तभी उसका ध्यान  डाक्टर की दी रिपोर्ट पर गया था।
क्या करूं समझ ही नहीं आ रहा एक तरफ वीरेन का व्यवहार और ये बच्चा, माँ का ये खबर सुन कर खुश होना।
तभी फोन पर घंटी बजी थी।देखा तो वीरेंद्र का ही था।
माँ आ गई थी?

जी दिखा दिया है डाक्टर को।दवाई ले आये  हैं।

माँ चली गई हैं क्या।

जी नहीं सो रही हैं वो।

ठीक है।

और फोन काट दिया था।

ये वही वीरेंद्र नहीं है इसने मुझ से यूं भी नहीं पूछा तुम कैसी  हो।
खुद से बातें करते   उसे भी नींद आ गई थी।शाम को चार बजे आँख खुली तो  देखा बहुत धूप थी।
एकाएक वो नहा कर तैयार हो गई थी उसने माँ को उठा कर चाय बिस्किट और दवाई दी थी।

खुद भी उसने चाय पी थी।

माँ मुझे दो घंटे के लिए स्कूल जाना पड़ेगा ,तब तकआप टीवी देखें।
पर बेटा अब तो छुट्टियाँ हो गई न।
हाँ जी माँ वो तो है,पर जो बच्चे अलग से पढ़ने केलिए आ रहें हैं उन के लिए तो जाना होता हैना।

पर तेरी तबियत?

मैं बिल्कुल भली चंगी हूँ माँ।आप चिंता न करे।
मिन्नी ने रास्ते से कुछ सब्जियाँ व फल लिए थे।

वो जैसे ही कमरे पर पहुंची रीति उस से चिपक गई थी,मेरी मंमां।

उसनें बेटी को आइसक्रीम दी थी और एक चाकलेट भी दिया था।
रीति ने दोनों चीजेंकृष्णा आन्टी को भी खिलानी चाही थी।पर आन्टी ने बड़े प्यार से मना करके उसे ही खाने को बोला था।
ये सब्जियाँ और फल हैं दोनों नानी बेटी खाना।

मंमां आप अभी फिर जाओगे?

हाँ बेटा डयूटी है तो जाना तो होगा न।

मिन्नी तुम निकल जाओ बेटा देर हो जायेगी तो यहाँ से साधन भी नही मिलेंगे।

मैं कुछ कपड़े धो देती हूँ रीति के।

बेटा कपड़े मैं रोज धो लेती हूँ, और हास्टल में बच्चे भी नहीं है तो फिर कोई काम भी नहीं है। तुम बेफिक्र रहो  और जाओ,जब समय हो आ जाना। रीति अपनी नानी के पास है।और बच्चे माँ से अधिक नानी के पास सुरक्षित होते हैं।

भरी आँखों से आन्टी को शुक्रिया बोल रीति को गले लगा कर वापिस आ गई थी मिन्नी।

घर पहुंचते पहुंचते सात बज गए थे, बहुत कमजोरी सी महसूस हो रही थी।
माँ बाहर  आँगन  में मकान मालिक की रिश्ते दार महिला के पास ही बैठी थी।

आ गई बेटी।

जी माँ।

मिन्नी ने अपने लिए नींबू पानी बनाया था, माँ और उस महिला ने,ये कहकर अभी चाय पी है,मना कर दिया था।

रात के खाने की तैयारी करने लगी तो माँ ने बताया था,वीरू भी आने वाला है  बेटी उस का फोन आया था।

जी माँ।

कुछ और खाली हो गया था उसके अंदर।माँ का खाना परोस ही रही थी कि गाड़ी की आवाज ने वीरेंद्र के आने की सूचना दी थी।
वो वापिस रसोई में चली गई थी।ठंडे पानी की बोतल लेकर जब वो आई तो वो अंदर आ चुका था। उसनें पानी का गिलास उस की तरफ़ बढ़ा दिया था।उन्होंने बिना उस की तरफ़ देखे पानी ले लिया था।
आप नहायेंगे या खाना  लगा दूंं आपके लिए भी। 

पहले नहाऊंगा, बाद में खाऊंगा।

माँ ने खाना खा लिया था,उसने माँ को दवा भी खिला दी थी।माँ के कहने पर मिन्नी ने भी दवा खा ली थी। वीरेंद्र नहा कर आ चुके थे मिन्नी ने खाना लगा दिया था।मिन्नी ने किचेन में जाकर बर्तन समेटने शुरू. कर दिए थे।

माँ बाहर आँगन में टहल रही थी।

मिन्नी तुम भी खाना खालो।

माँ मेरा मन नहीं है, गर्मी लग रही है नहाकर दूध ले लूंगी।

तुम नहा लो मैं बना देती हूँ रोटी।

पर माँ मन ही नहीं है न खाने को ।

मिन्नी ने रसोई समेट दी थी।वो नहाकर और दूध लेकर माँ के पास ही बैठ गई थी। माँ की चारपाई बरामदे मे  ही लगाई थी मिन्नी ने,गरमी में कूलर या ऐसी केनीचे उनसे नहीं सोया जाता था। मिन्नी ने बरामदे में बिस्तर लगा कर टेबल फेन भी चला दिया था। मिन्नी माँ के पास बैठी हुई दूध पी रही थी।वीरेंद्र ने अभी तक उससे कोई बात ही नहीं की थी।
ठीक है माँ सो रहा हूँ मैं थकान हो रखी है।

माँ ने मिन्नी को भी सोने के लिए कहा था।थोड़ी देर बाद मिन्नी कमरे में गई तो लाईट बंद थी।

वो भी चुपचाप बैड के एक किनारे पर अध लेटी सी हो गई थी।

शाम को स्कूल किसलिए गई थी तुम,एक अजीब सा गुस्सा था वीरेंद्र की आवाज में।

मेरी बेटी हैं व हाँ पर  उसको देखने गई थी।

वहाँ पर किसके पास है वो।

हमारे स्कूल की एक हाऊसमदर है उन के पास है।

ये बात मुझे बता कर भी तो जा सकती थी।

कब बताती,आप आजकल बात ही कितना करते हैं।
मैं बात न ही करता या तुम्हारे दिमाग में कोई खिचड़ी पकती रहती है, जो तुम मुझे कुछ बताना ही नहीं चाहती।  तुमनें मुझे आजतक ये नहीं बताया कि तुम माँ बनने वाली ह़ो, वो तो माँ ने चैकअप करवा दिया तो पता चल गया, वरना तुम तो।
वरना क्या मैं तो, मुझे भी आज ही पता चला है,और हर वक्त मुझे इल्जाम देने की जरूरत नहीं है। मिन्नी की आँखें भर आई थी। वो वहाँ से उठ कर बीच वाले दरवाजे से ड्राईंग रूम में जाकर लेट गईं थी। वो रोना चाहती थी फूट फूट कर पर उसके हालात उसे इस की भी इजाजत नहीं दे रहे थे।। वो सिसकती हुई सी पता नहीं कब सो गई।

सुबह उसकी आँख भी नहीं खुली थी वोसाढे छह बजे तक सोती ही रही थी। माँ अंदर आई तो आहट से ही उसकी आँख खुली थी। उसे यहाँ सोया देख शायद माँ को भी स्थिति का भान हो गया था ।बिना कुछ बोले उसनें माँ के लिए और खुद के लिए चाय बना ली थी।

तभी वो बराबर वाली महिला आई थी।बहन जी चलें क्या।

हाँ चलो।

माँ कहाँ  जा रही  हो?

अरे ये बता रही थी कि शहर में  एक योगगुरु आये हैं,घुटनों के दर्द में काफी फायदा होता है।

ठीक ही तो है माँ जाईये योगा से तो एक नहीं काफी  फायदे होत्ते हैं।तभी ऑटो रूकने की आवाज़ आई थी।

चलो बहनजी आटो भी आ गया है।

मिन्नी बरामदे में ही कुर्सी डालकर बैठ गई थी।

 लगभग दस मिनट बाद ही वीरेंद्र बाहर आ गए थे।

माँ कहाँ है।

योगा के लिए गई हैं बराबर वाली मैडम के साथ।

अंदर चलो बात करनी है तुमसे।

पर मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी।

मैने बोला न अंदर चलो,वीरेंद्र ने जबरन उसका हाथ पकड़ कर कुर्सी से उठा लिया था।लगभग खीचते हुए वो उसे कमरे में ले गया था।

क्या ड्रामा था वो रात को ड्राईंग रूम में जाने का।

मिन्नी खामोश ही रही थी।

जब फोन पर बात हुई ही थी तो क्यों नहीं बताया मुझे अपनी प्रेग्नेंसी के बारे में। 

मेरी प्रेग्नेंसी को ही लेकर झगड़ा है न तो में इसे आज ही खत्म करवा देती हूँ फिर तो खुश है न आप।

वीरेंद्र का हाथ उठ गया था और मिन्नी थप्पड़ लगते ही कार्नर पर रखे गमले पर गिर गई थी।उसके माथे से खून निकलने लगा था।

शायद वीरेंद्र को भी अपनी गलती का अहसास हो गया था।सारी मिंन्नी, उन्होंने उसे उठाने की कोशिश की थी। मिंन्नी उठ कर बाथरूम में चली गई थी,
 और घाव पर पानी गिराने लगी थी।पर खून रुक ही नहीं रहा था।

चलो गाड़ी में बैठो डॉक्टर के पास चलते हें।

मुझे आपकी किसी मदद की जरूरत नहीं है ,मैं कर लुंगी जो मुझे करना होगा। 

वीरेंद्र ने शर्ट पहन कर गाड़ी की चाबी उठाई और जबरदस्ती मिंन्नी को गाड़ी में बिठा दिया ,घर को लॉक करके वो  डॉक्टर के पास चले गए थे।
डॉक्टर साहब  ये मेरी वाइफ हें, इनका पैर स्लिप हो गया था माथे पर चोट लगी है ख़ून ही बंद नहीं हो रहा,ये प्रेग्नेंट भी हैं,और एनि मिक भी, प्लीज्।

थोड़ा रिलेक्स रहें आप  हमें देखने दें।

मिंन्नी को माथे पर दो टाकें आये थे। डाक्टर ने अपनी तरफ से दवा लिख तो दी थी।पर उन्होंने ये भी कह दिया थाकि ये दवाई आप अपनी लेडी डाक्टर की सलाह से ही ले।बहरहाल कोई खतरे की बात नहीं है मैने टांके लगा दिए है पर आप एक बार उन को दिखा कर ही दवा लीजिये गा,पता नहीं उन्होंने कौनसी दवा लिख रखी है।

वीरेंद्र उसे लेकर बाहर आ गए थे। किस डाक्टर के पास ग ए थे तुम लोग?

मुझे किसी डाक्टर की जरूरत नहीं है।

मैने जो पूछा उस का जवाब दो।फालतू बकवास नहीं।
डाक्टर बतरा।

बिना कुछ बोले वीरेंद्र ने गाड़ी ऊधर ही बढ़ा दी थी।मिन्नी का कुरता खून से लथपथ था।

वहाँ जाते ही नर्स ने उनकी हालत देखते हुए तत्काल डाक्टर को बुलवा लिया था।उन्होंने पहली  लिखी दवाईयां बदल दी थी और वीरेंद्र को बहुत एहतियात रखने को कहा था ,क्योंकि मिन्नी में खून मात्र सात ग्राम था।डॉक्टर ने ये भी कहा था कि मुझे ये किसी टेंशन में लगती हैं, बेहतर होगा  ये खुश रहें, ताकि इन की   टेंशन का बेबी पर बुरा असर न पड़े।

जी मैडम।

वो उस को घर लेकर आया तबतक कमला भी आ चुकी थी , वो बाहर ही खड़ी थी।

क्या हुआ दीदी।वो मिन्नी को देखकर कुछ चिन्तित हो गई थी।
कुछ नहीं चोट लग गई है थोड़ी सी। मिन्नी ने कहा था।
कमला 
जी साहब।

मैडम के कपड़े निकाल दो अलमारी से।

रहने दे कमला तूं अपना काम देख ले मैं कर लूंगी।

वीरेंद्र गुस्से में दाँत पीस कर रह ग ए थे।

मिन्नी ने अलमारी खोल कर कपड़े लिए थे और बाथरूम में चली गई थीउसे बाथरूम में काफी वक्त लग गया था नहाना भी कपड़ें भी धोना और खुद को सभांलना भी।

कितना टाईम लगाओगी क्या सो गई हो बाथरुम में।
वो  चंद क्षण बाद चुपचाप बाहर आ गई थी,धूले कपड़े उसने रस्सी पर डाल दिए थे।

तभी आटो के रुकने के साथ  ही माँ अंदर आ गई थी।
मिन्नी के माथे पर चिपकी पट्टी से वो हैरान और चिंतित हो गई थी।

क्या हुआ बेटी।

कुछ नहीं माँ ,थोड़ा चोट लग गई थी।

ऐसे कैसे चोट लग गई संभल कर नहीं चल सकती क्या। हालत देखी है अपनी।

बस माँ संभल ही नहीं पाई न,गर संभल जाती तो जख्मी न होती, मिन्नी के चेहरे पर एक दर्द भरी  मुस्कान थी।
वीरेंद्र खामोश बैठे थे।

तभी कमला आकर बोली दीदी मुझे बताओ मैं रसोई के काम में मदद कर देती हूँ।

नहीं कमला मैं कर लूंगी।

आप बतायें न दीदी।

कमला चाय बना दो एक कप, वीरेंद्र बोले थे।
जी साहब। वो रसोई में चली गई थी।

तूनें तो कुछ नहीं  कहा बहू को माँ  बेटे की चुप्पी  और परेशानी को घूर रही थी।

मैने क्या कहना था?

फिर परेशान क्यों हो।

कुछ नहीं माँ,उस को चाय के साथ कुछ खिलवा देना ,फिर दवाई ले लेगी।

तूं क्यों नहीं जाकर खिलाता तेरी तो बीवी है वो।

माँ प्लीज।

कमला सब के लिए चाय लेकर अंदर आ ग ई थी,वीरेंद्र ने उसे कहा था कि वो माँ से पूछ कर खाने की तैयारी कर ले।

वो अपनी और मिन्नी की चाय उठा कर मिन्नी के पास बैड  रूम में ही ले गए थे।मिन्नी करवट लेकर लेटी हुई थी।वीरेंद्र ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था।चाय के कप मेज पर रख कर उन्होंने मिन्नी के सामने हाथ जोड़ दिए थे।

सारी मिन्नी  ये मेरी पहली और आखिरी गलती होगी,माफ कर दे डियर।मेरा हाथ तुम पर उठा वो भी इस तरहं, सारी यार माफ कर दो प्लीज।
लो चाय पी लो और दवा खालो उन्होंने बिस्किट मिन्नी की तरफ बढ़ा दिया था।

मुझे नहीं पीनी चाय मैं पी चुकी हूँ, और मैं खा लूंगी दवा ,मैं आपकी दया की मोहताज नहीं हूँ।

यार गुस्सा थूक दो,मैं वाकई बहुत शर्मिंदा हूँ, प्लीज मिन्नी।
तभी बाहर से वीरू वीरू आवाज आई थी।

जाईए बाहर भाई साहब हैं आपके।

माँ है ना बाहर।

आप जायें मैं ठीक हूँ।

मैं कहीं नहीं जा रहा, मुझे यहीं रहना है तुम्हारे पास।

तभी कमला ने बाहर दरवाजे से आवाज दी थी।

साहब माँ जी बुला रही हैं।

वीरेंद्र उठ कर बाहर आ गया था।

बेटा तेरी बुआ आई हुई है,उसकी लड़की की शादी है,वो भात का निमंत्रण देने आई हैतो मुझे दो दिन के लिए गाँव जाना होगा। 

तो चली जाओ माँ अपनी दवाई समय से लेती रहना।

और बहू यहाँ अकेली।

क्यों क्या हुआ है उसको, और फिर मैं भी तो हूँ यहाँ पर।
वीरू तूं बहू को कुछ मत कहा कर बेचारी बहुत अच्छी है। माँ ये  बाहर आकर फुसफुसा रही थी। 

कुछ नहीं है माँ सब ठीक है।

कुछ ठीक नहीं है,कैसी थी और ये कैसी हो गई है,शादी के बाद लड़कियाँ खुश रहती है उनके चेहरे पर चमक आती है,और ये तो जैसे बुझ सी गई है।खून का इतना कम होना,वो भी इस उम्र में,अच्छी बात नहीं है बेटा।

तूं अब आयेगी न माँ तो सब ठीक मिलेगा तेरे को।

कमला अंदर चाय दे आई थी।बाहृर वो माँ को और वीरेंद्र को पकड़ाने लगी तो वो चाय लेकर भाई के पास चला गया था।

माँ ने कमला को इशारा किया था वो चाय और हलवा लेकर माँ के पीछे मिन्नी के कमरे में आ गई थी।
मिन्नी थोड़ा हलवा खा ले बेटी तेरे् लिए बनाया है।

माँ बाद म़े खा लूंगी.

मेरे सामने खाओ, कोई बहाना नहीं चलेगा।उन्होंने अपने जाने की मजबूरी भी मिन्नी को
बताई। 

आप जायें माँ अपना ध्यान रखिएगा। मैं ठीक हूँ।

मिन्नी  बेटी वीरू दिल का बुरा नहीं है,बस इसको थोड़ा गुस्सा जल्दी आ जाता है।इसकी किसी बात को दिल पर मत लेना।

एक फीकी  सी 
मुस्कान मिन्नी के चेहरे पर आई और चली गई.माँ मिन्नी की मुस्कान के आने जाने के रूख से ही मिन्नी की चोट का कारण समझ ग ई थी।
तू  तो बहुत समझदार है बेटी, तेरे कारण ही ये दोबारा जीना सीखा है। माँ की आँखें भर आई थी।

आप क्यों रो रही हैं माँ?

मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे इस छोटे से आशियाने को किसी की नज़र लगे।

कुछ नहीं होगा माँ।

तभी कमला ने आकर कहा था ,माँ जी रोटियाँ बना कर हाटकेस में रख दी है, सब्जी तैयार है।रसोई साफ कर दी है।

कमला अब तुम चली जाओ, देर हो जायेगी दूसरे घरों के लिए तुम्हें।

कोई बात नहीं दीदी।

माँ ने कमला को कहा था, बेटी मेरी बहू को संभाल लेना।

मै जल्दी ही आ जाऊँगी।

कमला माँ को खाना डाल दो फिर  ये जायेंगी और अंदर भी खाने के लिए पूछ लो।

मैने पूछा है  दीदी, साहब तो बोले बना कर रख दो बाद में खा  लेंगे औ र वो दूसरे साहब बोले, वो खाकर आयें है।

माँ खाना खाकर चली गई थी। वीरेन्द्र किसी से फोन पर बात कर रहे थे।
मेनगेट बंद करने की आवाज़ आई थी,शायद वीरेंद्र ने ही किया था।वो मिन्नी के पास आकर वहीं  बैड पर लेट ग ए थे,और सिग्रेट जला ली थी। एक खामोशी पसरी हुई थी कमरे में।

मिन्नी माफ नहीं करोगी मुझे, अच्छा मत करो पर मेरे बच्चे को ये बिल्कुल मत बताना कि तुम्हारे बाप ने मुझे थप्पड़ मारा और मेरा माथा फट गया था।
नहीं बताओगी न मिन्नी?

उधर से कोई जवाब नहीं था। 

तभी फोन की घंटी ने खामोशी को तोड़ा था।

मिन्नी आधे घंटे के लिए आफिस जाना होगा, चला जाऊं क्या, एक बंदा पैमेंट देने आया हुआ है।

जाईए।

तुम ठीक तो हो ना।

ये तो नाटकों वाली औपचारिकता हुई न, वरना मेरी इतनी फिक्र की चंद घंटे अकेला छोड़ने में.भी फिक्र, वाह।मिन्नी ने व्यंग्य ही कसा था।

वीरेंद्र बिना कुछ बोले निकल गया था।

मिन्नी का दिमाग उसे कह रहा था, सब कुछ छोड़ छाड़ के चली जाओ यहाँ से, दिल कह रहा था कि  ये गलत है , गुस्से में गलती हो जाती है, कितनी बार माफी भी तो माँगी है उसने।

मेरी भी तो गलती थी जो मैंने उसके बच्चे को खत्म करने को बोला।पर वो मेरा भी तो बच्चा है।शायद गलती की शुरुआत मुझसे हुई थी तो नतीज़ा भी मुझे ही भुगतना था। कितनी चिंता हो गई थी उन्हें मेरी कैसे फटाफट डाक्टर के पास ले गए।वो जख्मी लड़की खुद गुनाहगार के पक्ष में  ही दलीलें दे रही थी।फिर तो मुकदमा खारिज होना ही था,अदालत भी तो दिल की थी ना।

कुछ दिनों में मिन्नी की चोट भी ठीक हो ग ई थी।ज़िंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर आ  तो ग ई थी लेकिन मिन्नी के अंदर कुछ दरक सा गया था,क्या दरका था क्यों दरका था,इस की कोई भी दलील वो खुद को नहीं दे पाई थी।

वीरेंद्र ने दो  एक बार रीति को घर लाने के लिए कहा था,पर मिन्नी ने मना कर दिया था ।वो नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी के बालमन पर   एक प्रश्न रह जाये।

वो अपनी प्रेगनेंसी को लेकर तथा रीति के उस प्रश्न को लेकर भी परेशान थी,जो वो कर सकती थी। कृष्णा आन्टी ने उसे समझाया था, मिन्नी क ई बार सब सवालों के जवाब  वक्त पर छोड़ देने चाहिए।वक्त हर चीज का समाधान है।जो किरदार उपर वाला आपको निभाने को दे रहा है उसे ईमानदारी से  अदा करते जाओ।
आन्टी ये ज़िंदगी आपकी बातों जितनी सरल भी नहीं है।
  तो फिर क्या करें, बेटा , रोतें रहे चौबीसों घंटे, ताकि हर मिलने वाला सहानुभूति की भीख हमारी झोली में डालता र हे।

शायद आंटी ठीक ही कहती हैं।

रीति की छुट्टियाँ खत्म हो गई थी, मिन्नी उसे वापिस छोड़ आई थी। स्कूल दोबारा शुरू हो ग ए थे।बहुत थका देने वाली दिनचर्चा हो जाती थी उसकी।  नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी। हारकर कमला को ही बोल दिया था, मुझसे ज्यादा पैसे ले लिया करो और सुबह जल्दी आ जाया करो,और फिर शाम को भी। 

डाक्टर ने बताया था कि मिन्नी को जुड़वां बच्चे  है,और मिन्नी की हालात काफी कमज़ोर है।

नीरजा ने भी शादी के बाद अपने  ससुराल वाले शहर में ही तबादला करवा लिया था।फोन पर कभी कभार बात हो जाती थी।कन्नु हास्टल में ही थी।वो मिन्नी से मिल भी लेती थी।

गाँव से माँ भी आती रहती थी।पर वो यहाँ रूक नहीं पाती थी क्योंकि शहर में उनका मन नहीं लगता था।

वीरेंद्र अपने काम के साथ साथ अपने शौंक का भी पूरा ध्यान रखता था ।मिन्नी को उनका शराब पीना बिल्कुल पंसद नहीं था,पर वह कुछ भी नहीं बोलती थी बोलने से झगड़ा बढ़ जाता था,वो रोजाना रात को  पीकर आता और मिन्नी अपनी  खामोशी की बढ़ती .चद्दर को थोड़ा और  फैला लेती ,उसकी खामोशी से वो रात तो  शान्ति से कट जाती पर उनके रिश्ते के बीच कुछ दूरी और बढ़ जाती। 
क ई बार मिन्नी ये सोचती कि हकीकत कितनी कड़वी होती है,जब तक शादी नहीं हुई थी तो वीरेंद्र कितना ध्यान रखते थे,अब उन्हें ये भी पता नहीं रहता कि वो इस हालत में सब्जी राशन नौकरी सब कैसे मैनेज करती है।
मिन्नी न कभी उन से पैसे माँगे ,न ही कभी उन्होंने कभी पूछा कि कुछ जरूरत है, यहाँ तक कि वो अपनी दवाई डाक्टर आदि का प्रबंध भी खुद ही करती।रीति की फीस स्कूल के कमरे का किराया, घर का राशन, घर का किराया सब वो ही करती थी।, इन सब से जैसे वीरेंद्र का कोई सरोकार ही नहीं था।
हाँ  वो कहीं जा रहा होता तो जरूर पूछता कुछ लाना है क्या।बता दो या फिर फोन कर देना डियर।
उसकी सास भी कहती थी,ऐसी हालत में तो लड़कियाँ पता नहीं क्या क्या खाने की फरमाइश करती हैंऔर एक तुम हो कि पता ही नहीं चलता।
एक फीकी सी मुस्कान उसके चेहरे पर आ जाती और चली।
जाती।

क्रमशः
औरत आदमी और छत।।
लेखिका, ललिताविम्मी
भिवानी, हरियाणा

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